माता,पिता,अतिथि सेवा और एकादशी की महिमा से सभी कुछ हो सकता सुलभ

पब्लिक न्यूज़ अड्डा से संतोष तिवारी
गुगरापुर कन्नौज। मनुष्य स्वयं को धर्मात्मा दिखाना तो चाहता लेकिन बनना नहीं चाहता।मानव को संसार की दृष्टि में नहीं बल्कि भगवान की दृष्टि मेंअपना स्थान बनाना चाहिये इससे मनुष्य का कल्याण होगा। ईश्वर की दृष्टि में रहने के लिए हर मनुष्य को कम कम एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए क्योकि एकादशी का व्रत जगतपिता ठाकुर जी को बहुत प्रिय होता है। ये विचार याज्ञवल्क्य आश्रम जलेसर पर श्री राम कथा के छठवें दिन शुक्रवार को आचार्य घनश्याम पांडे ने प्रकट किये। शुक्रवार को आचार्य घन श्याम पांडेय ने श्री राम कथा के छठवें दिन कथा के दौरान एकादशी व्रत ,माता,पिता और अतिथि सेवा के माहात्म्य को बताते हुए कहा कि हर मनुष्य को यह पता होना चाहिए कि माँ-बाप और अतिथि भी देवतुल्य ही होते हैं। जो भी अतिथि हमारे घर से निराश होकर जाता है वह अपने जाने के साथ गृहस्वामी के सारे सुकृत और पुण्य ले जाता है। हमेशा अपने माता पिता और अतिथि की सेवा पूरी निष्ठा से करनी चाहिए।ईश्वर के प्रति कम कम प्रत्येक माह की दोनो एकादशी का व्रत अवश्य करें।आज के युग में धर्मात्मा दिखना तो सब चाहते है लेकिन कोई भी मनुष्य धर्मात्मा बनना नहीं चाहता।यदि आज आप धर्म का सम्मान करेंगे तो आने वाली पीढ़ी में धर्म के संस्कार जागृत होंगे और यही पीढ़ी भविष्य में हमारा सम्मान करेगी। प्रत्येक मनुष्य को एक बात अवश्य समझ लेनी चाहिए कि भगवान मनुष्य के अंतःकरण की बात जान लेते हैं और तुम्हारे हृदय के भाव के अनुसार ही फल देते है।मनुष्य को अपने आराध्य पर ही मजबूत निष्ठा रखनी चाहिए क्योकि अगर तुम्हे तुम्हारा आराध्य कुछ नहीं दे सकता तो इस संसार में मनुष्य को कोई कुछ नहीं दे सकता है।कथा के दौरान संत श्री सीताराम जी महाराज,संत दिगंबर दास,संत हरिदास,प्रेम सिंह,आलोक सिंह,संत आशुतोष दास,अरुणेश दीक्षित,बाबा भोलादास सहित भारी संख्या में श्रोता गण उपस्थित रहे।

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