राशिद के है ऐसे ‘राम’ अयोध्या का इंतज़ार ख़त्म होने वाला है, 22 जनवरी को राम होगे विराज मान।

नई दिल्ली अयोध्या का इंतज़ार ख़त्म होने वाला है, 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम है। भारत की ख़ूबसूरती तो देखिए श्रीराम के ‘ननिहाल’ से लेकर ‘ससुराल’ तक से भेंट आ रही है। ‘ननिहाल’ छत्तीसगढ़ से चावल, ‘ससुराल’ जनकपुर से वस्त्र और मिष्ठान आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के एटा से 2100 किलो का घंटा तो गुजरात के वडोदरा से 108 फ़ीट की अगरबत्ती अयोध्या आ रही है। अवध में कण कण राम और पग पग राम हैं। राम हिंदुओं के ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ तो मुसलमानों के ‘इमाम-ए-हिंद’ हैं। मेरा जन्म अयोध्या से 154 किलोमीटर दूर जौनपुर में हुआ। हम बचपन में संपुट लगाया करते थे- ‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी’। राम रचे बसे हैं, राम रमे हैं, राम आराध्य हैं, राम साध्य हैं। श्रीराम जीवन जीने का आदर्श हैं, जिनके करोड़ों साधक हैं। भारत के लिए श्रीराम नाम का अर्थ है पुरुषोत्तम, रघुपति, राघव, राघवेन्द्र, रघुनंदन, रघुवर, रघुवीर, रघुराज, रघुनाथ, रघुनायक, जानकीवल्लभ। समूचे भारवर्ष को एक सूत्र में पिरोने की घड़ी आ रही है। 90 का दशक पीछे छूट चुका है, अयोध्या का कायाकल्प संकल्प के साथ हुआ है, अब सरयू से लेकर हनुमानगढ़ी और रामलला विराजमान से लेकर राम की पैड़ी तक राममय है।

राम, जिनके लिए अल्लामा इक़बाल लिखते हैं- “है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़, अहल-ए-नज़र समझते हैं उसको इमाम-ए-हिंद”। कैफ़ी आज़मी की नज़्म में ‘राम का दूसरा वनवास’ है, तुलसी के राम में सौंदर्य, शक्ति और शील का संगम है, कबीर के राम सर्वव्यापी परमेश्वर हैं जिनका न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत। जहांगीर के मुल्ला मसीह के राम पांच हज़ार छंद में मिलेंगे तो अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के राम मुसलमानों के लिए भी आदर्श हैं। फ़रीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्दीन नागौरी के राम आत्मा में बसते हैं। जितना विशाल संसार उतना विशाल राम का नाम। त्रेतायुग में जन्मे राम के प्रमाण दुनिया भर में बिखरे शिलालेख, सिक्के, रामसेतु, पुरातात्विक अवशेष, प्राचीन ग्रंथ में हैं। भारत से लेकर श्रीलंका तक कण कण में और पग पग पर राम मिलेंगे। लखनऊ के मिर्ज़ा हसन नासिर की रामस्तुति में राम कुछ ऐसे हैं-

कंजवदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुंदरं
दैत्य दमनं पाप-शमनं सिंधु तरणं ईश्वरं
गीध मोक्षं शीलवंतं देवरत्नं शंकरं
कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरं”

वाल्मीकि के मर्यादा पुरुषोत्तम राम गांभीर्य में समुद्र के समान हैं। ख़ुद वाल्मीकि लिखते हैं- ‘समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव’। राम के ‘र’ का अर्थ है ‘तत्’ यानी परमात्मा, ‘म’ का मतलब ‘त्वम्’ अर्थात् जीवात्मा, और ‘आ’ की मात्रा ‘असि’ का विस्तार है। कविवर मैथिली शरण गुप्त तो राम के जीवन चरित्र को उकेरते हुए कहते हैं कि –

राम। तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।”

देश की सियासत में आते आते राम का नाम अजीब अंजाम तक पहुंच जाता है। डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने राम के जन्म तक पर सवाल उठा दिए हैं। एलंगोवन कहते हैं कि, “राम का जन्म एक पौराणिक कथा भर है, राम सिर्फ एक पौराणिक कहानी हैं।” इससे पहले बिहार के बयानवीर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर प्रभु श्रीराम को लेकर विवादित टिप्पणी कर चुके हैं। यूपी में विवादों के ‘स्वामी’ प्रसाद मौर्य रामचरितमानस पर विष वमन कर चुके हैं। राम का नाम सियासत में बहुत काम का है, 6 दिसंबर 1992 के बाद से आज तक काम ही आ रहा है। 31 बरस गुज़र चुके हैं, तब से लेकर आज तक 7 लोकसभा चुनाव हुए, पर राम सियासत में ख़ूब काम आ रहे हैं। एक सोच बना ली गई है कि जो ‘जय श्रीराम’ करेगा वो बीजेपी वाला होगा और जो राम के वजूद पर सवाल उठाएगा वो विपक्षी होगा।

अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बन कर तैयार हो चुका है। भारतीय जनता पार्टी राम नाम की सियासत में अग्रणी रही है। विपक्ष में राम नाम को लेकर असुरक्षा की भावना है। जनवरी 2024 में श्रीराम की उनके स्थान पर प्राण-प्रतिष्ठा होगी, उसके दो महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव हैं। एक तरफ़ धर्म है तो दूसरी तरफ़ जाति, एक तरफ़ राम के मतवाले हैं तो दूसरी तरफ़ जाति के जियाले हैं, एक तरफ़ मोदी हैं तो दूसरी तरफ़ I.N.D.I.A. वाले। सियासत तो शतरंज है, हर पांच साल पर शह मात का खेल चलता रहेगा, पर मेरा मानना है कि राम के नाम पर स्तरहीन राजनीति नहीं होनी चाहिए। राम के नाम पर ओछी राजनीति और शब्दों का इस्तेमाल करने वालों को ये एहसास होना चाहिए कि, भगवान पर आपकी ज़ुबान हल्की हुई नहीं कि आप ‘कलंक का कीचड़स्नान’ करने लगते हैं। प्रभु श्रीराम पर विवादित टिप्पणी डीएमके जैसी पार्टी और I.N.D.I.A. गठबंधन को भारी नुक़सान पहुंचाएगी। याद रखिए भारत में श्रीराम का नाम और पुरुषार्थ धर्म, जाति, पंथ, समुदाय, संप्रदाय से ऊपर हैं। भारत देश में कंकर-कंकर, शंकर जहां पर, कण-कण में है भगवान, है राम से राम-राम तक, श्वास-श्वास में बसते राम। ‘एलंगोवनों’, ‘चंद्रशेखरों’, ‘स्वामियों’ जैसों को सोचने की ज़रूरत है कि जिस भारत की हर सांस में राम हैं, वहां पुरुषोत्तम पर अमर्यादित टिप्पणी से आपकी सियासत का स्वर्गवास भी हो सकता है।

लेख

रशीद जी एडिटर

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