हे! सुमंत्र राज्याभिषेक की करो तैयारी।
कवि विवेक कुमार
सरायमीरा कन्नौज
अस्ताचल में छिपा सूर्य फिर उदित हुआ है।
अवधपुरी का हर जन मानस मुदित हुआ है।
जीवित रहे वचन रघुकुल की रीति निभायी।
पूर्ण हुआ वनवास पुनः दीवाली आयी॥
सप्त सिंधु जल कलश उठाओ बारी बारी।
हे! सुमंत्र राज्याभिषेक की करो तैयारी।
पांच शतक की पूर्ण हुयी है आज प्रतीक्षा।
रामलला की होने वाली प्राण प्रतिष्ठा ॥
दूर दूर से भक्तों ने भेंटे भिजवायीं।
अवधवासियों ने दीपक पंक्तियाँ सजायी।
सुर मुनि गंधर्वों ने भी आरती उतारी॥
हे! सुमंत्र राज्याभिषेक की करो तैयारी।
लहरायी है चहुँ दिशि फिर से सूर्य पताका।
रामभक्त का होगा कभी बाल न बाका।
मोल समर्पण का सबको देते हैं रघुवर।
चाहे नर हो चाहे पक्षी चाहे वानर॥
कार सेवकों के साहस के हो आभारी।
हे! सुमंत्र राज्याभिषेक की करो तैयारी।
राम नाम वह डोरी जिससे बंधा सनातन।
राम नाम की महिमा गाते ग्रंथ पुरातन॥
सबको एक सूत्र में बांधा था रघुवर ने।
जय जय राम तभी गाया शिव रामेश्वर ने।
कमलनयन की पूजा देख शक्ति भी हारी।
हे! सुमंत्र राज्याभिषेक की करो तैयारी।
राम नहीं हैं केवल किंचित संप्रदाय के ।
वह निषाद सुग्रीव जटायु मृतप्राय के॥
राम शरणगत शबरी और विभीषण के हैं।
राम विश्व में कण कण व्यापी,जन जन के हैं।
चुनो रामपथ गुनो नहीं तुम रामपंथ को।
समझा दो हे! राम तुम्ही चंपत महंत को।
वरना कहलायेगी बुद्धि गयी है मारी।
हे! सुमंत्र राज्याभिषेक की करो तैयारी।